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Blog / 13 Feb 2020

(आर्थिक मुद्दे) 15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट (15th Finance Commission Interim Report)

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(आर्थिक मुद्दे) 15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट (15th Finance Commission Interim Report)


एंकर (Anchor): आलोक पुराणिक (आर्थिक मामलों के जानकार)

अतिथि (Guest): अजय दुआ (पूर्व वाणिज्य सचिव), शिशिर सिन्हा (डिप्टी एडिटर, हिन्दू बिज़नेस लाइन)

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, 15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट संसद में पेश की गई। इस रिपोर्ट में केंद्र और राज्यों के बीच कर और राजस्व वितरण तय करने के अलावा कई अन्य अहम सिफ़ारिशें भी की गई हैं।

  • वित्त आयोग की ये रिपोर्ट वित्त वर्ष 2020-21 के लिए है और इसकी फाइनल रिपोर्ट 30 अक्तूबर, 2020 तक आ सकती है।
  • यह फाइनल रिपोर्ट 2021-22 से शुरु होनेवाले पांच सालों के लिए होगी।

वित्त आयोग

वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है जिसका ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 280 में किया गया है। इसका गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक 5 साल के अंतराल पर किया जाता है। आयोग में एक अध्यक्ष के अलावा 4 अन्य सदस्य भी होते हैं। बता दें कि भारत के पहले वित्त आयोग का गठन 1951 में के सी नियोगी की अध्यक्षता में किया गया था।

क्या काम करता है वित्त आयोग?

अगर वित्त आयोग के कामों पर नज़र डालें तो इसमें शामिल हैं -

  • केंद्र और राज्य के मध्य करों से होनेवाली आय के वितरण की सिफारिश करना
  • राज्यों के लिए अनुदानों की सिफारिश करना
  • स्थानीय निकायों के लिए वित्तीय प्रावधान उपलब्ध करवाना
  • राष्ट्रपति को वित्त आयोग के सीमा क्षेत्र में निर्दिष्ट किसी विषय पर सलाह देना

15वां वित्त आयोग

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 22 नवंबर 2017 को एन. के. सिंह की अध्यक्षता में 15वें वित्त आयोग का गठन किया गया था।

कैसे किया गया है राजस्व का बँटवारा?

इस वित्त आयोग ने आय विस्थापन, वन आवरण, कर प्रयास, जनांकिकीय प्रदर्शन, जनसंख्या और क्षेत्रफल को केंद्र और राज्य के मध्य राजस्व बँटवारे का आधार बनाया है। इनमें से हर फैक्टर यानी कारक को अलग-अलग वेटेज यानी भार दिया गया है।

  • इसमें 2011 की जनसंख्या को 15%, आय विस्थापन या आय दूरी को 45% और वन आवरण को 10% वेटेज दिया गया है।
  • इसके अलावा, कर प्रयासों का वेटेज 2.5%, ‘जनसांख्यिकीय प्रदर्शन’ का वेटेज 12.5% और क्षेत्रफल का वेटेज 15% है।

क्या हैं महत्वपूर्ण सिफ़ारिशें?

मौजूदा 15वें वित्त आयोग ने केंद्र द्वारा राज्यों के साथ साझा किए जाने वाले कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी 41% करने की सिफ़ारिश की है। जबकि 14वें वित्त आयोग के दौरान यह 42 फ़ीसदी था।

  • राज्यों के हिस्से में जो एक फीसदी की कमी की गयी है, वो आयोग द्वारा तय फॉर्मूले के मुताबिक़, पूर्ववर्ती राज्य जम्मू-कश्मीर के हिस्से, जो कि 0.85 फीसदी है, के लगभग बराबर है।
  • एक प्रतिशत रकम जम्मू-कश्मीर-लद्दाख के लिए रखी गयी है
  • आयोग ने रक्षा खर्च के लिए नॉन-लैप्सेबल फंड शुरू करने के लिए एक विशेषज्ञ टीम के गठन का प्रस्ताव भी किया है।
  • आयोग ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) के क्रियान्वयन को लेकर रिफंड में देरी और पूर्वानुमान की अपेक्षा कर संग्रह में कमी जैसी कुछ चुनौतियों को भी उजागर किया है।
  • इसके अलावा, वित्त आयोग ने स्थानीय निकायों के लिए साल 2020-21 में 90,000 करोड़ रुपये, स्थानीय स्तर पर राहत आपदा कार्यों को बेहतर बनाने के लिए राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन कोष के गठन और केंद्र तथा राज्यों के बीच खर्च साझाकरण की वर्तमान व्यवस्था को जारी रखने की बात कही है।

कुछ राज्यों की क्या है शिकायतें?

15वें वित्त आयोग के द्वारा अपनाए गए नए मापदंड से कुछ राज्यों को नुकसान भी हो रहा है। इससे इन राज्यों ने कुछ आपत्ति जताई है। दक्षिणी राज्यों की सरकारों ने आयोग द्वारा उपयोग किये जाने वाले जनसंख्या मापदंड की आलोचना की है।

  • 14वें वित्त आयोग ने राज्यों के हिस्से की गणना के लिये साल 1971 और साल 2011 के जनगणना आँकड़ों का उपयोग किया था । इससे अलग, 15वें वित्त आयोग ने सिर्फ साल 2011 के जनगणना आँकड़ों का प्रयोग किया है।
  • आलोचना करने वाले राज्यों का मानना है कि वर्ष 2011 के जनगणना आँकड़ों के उपयोग से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसी बड़ी आबादी वाले राज्यों को ज़्यादा हिस्सा मिल जाएगा, जबकि कम प्रजनन दर वाले छोटे राज्यों के हिस्से में काफी कम राजस्व आएगा।
  • हिंदी भाषी उत्तरी राज्यों (बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और झारखंड) की संयुक्त जनसंख्या 47.8 करोड़ है, जो कि देश की कुल आबादी का 39.48 फीसदी है। इस क्षेत्र के करदाताओं की कर राजस्व में महज़ 13.89 फीसदी की हिस्सेदारी है, जबकि उन्हें कुल राजस्व में से 45.17 प्रतिशत हिस्सा दिया जाता है। दूसरी ओर आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों को कम आबादी के कारण कुल राजस्व में काफी कम हिस्सा मिलता है, जबकि देश की कुल राजस्व प्राप्ति में उनका योगदान काफी अधिक रहता है।

निष्कर्ष

इस प्रकार वित्त आयोग द्वारा जो भी सिफ़ारिशें पेश की गई हैं, उनमें सतत विकास के साथ-साथ केंद्र और राज्य के बीच राजस्व के वितरण और अनुदानों की समुचित व्यवस्था है। बहरहाल वित्त आयोग ने राज्यों को विशेष अनुदान देने की अनुशंसा ज़रूर की है लेकिन यह पूरी तरह से केंद्र सरकार पर निर्भर करता है कि वो इन सिफ़ारिशों को माने या ना माने। लेकिन अभी तक परंपरा यही रही है कि केंद्र सरकार वित्त आयोग की सिफारिशों को अमूमन मान लेती है।